भाजपा को हार का मुँह दिखाने वाली एकमात्र दमदार पार्टी है बसपा, आइए जानते हैं मायावती के इस बयान के पीछे का कारण..?
लखनऊ। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में विधानसभा चुनाव (assembly elections) के दौरान बसपा (BSP) की मुखिया मायावती (Mayawati) ने एक बयान दिया था कि यूपी (UP) में बीजेपी (BJP) को सिर्फ बसपा ही हरा सकती है। उनका इशारा मुस्लिम वोट बैंक (Muslim vote bank) की तरफ था जो उनसे छिटक गया है। वो उस वोट बैंक (vote bank) को पाने की कोशिश में जुटी हैं। विधानसभा चुनाव के बाद आजमगढ़ (Azamgarh) में हुए लोकसभा उपचुनाव (Loksabha by-election) में भी मायावती ने अपनी इसी रणनीति (strategy) पर काम करते हुए जमाली (Jamali) को टिकट दिया था।
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उनकी निगाहें दलित-मुस्लिम समीकरण (Dalit Muslim equation) पर थी लेकिन ये समीकरण भी बिखर गया और सपा हार गई। इसके बाद मायावती ने फिर वही बयान दोहराया कि बीजेपी को सिर्फ बसपा ही हरा सकती है। आइए जानते हैं कि मायावती के इस दावे में कितना दम है..? यूपी में बीजेपी की जीत का सिलसिला 2014 के चुनाव से ही जारी है। इसके बाद बीजेपी ने 2017 का विधानसभा चुनाव, 2019 का लोकसभा चुनाव, 2022 का विधानसभा चुनाव जीता। सफलता के रथ पर सवार बीजेपी को यूपी में कौन रोकेगा ये सबसे बड़ा सवाल है..? बीजेपी को रोकने के दावे हमेशा ही मायावती करती रही हैं।
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मायावती ने कहा था कि सिर्फ बसपा ही एक ऐसी पार्टी है जो बीजेपी को रोक सकती है। मायावती बीजेपी को रोकने के लिए जिस दावे की बात कर रही हैं वो उनकी सोशल इंजीनियरिंग (social engineering) में छिपा हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों (political analysts) की मानें तो सिर्फ मुस्लिम और दलित समीकरण के सहारे बसपा बीजेपी को नहीं रोक सकती है। बीजेपी को रोकना है तो मायावती को 2007 वाल फॉर्मूला यानी सोशल इंजीनियरिंग को फिर से जिंदा करना होगा। इसके बिना बीजेपी को नहीं हराया जा सकता है।
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2007 के चुनाव में बसपा ने जो सोशल इंजीनियरिंग का गुलदस्ता बनाया था कुछ वैसा ही गुलदस्ता आज बीजेपी बना चुकी है। बसपा को सोशल इंजीनिरिंग को लेकर हर समाज के बड़े नेताओं को अपने पाले में लाना होगा। बीजेपी को देखें तो उसके पास हर समुदाय को साधने का प्लान तैयार है। राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha elections) की ही बात करें तो बीजेपी ने बाबूराम निषाद, लक्ष्मीकांत वाजपेयी, संगीता यादव जैसे लोगों को टिकट देकर हर जाति को साधने की कोशिश की थी। ठीक उसी तर्ज पर मायावती को आगे बढ़ना होगा।
विधानसभा चुनाव के दौरान भी यह देखने में आया था कि मायावती ने मुस्लिम मतदाताओं (voters) का दिल जीतने के लिए हर हथकंडा अपनाया था लेकिन उनकी रणनीति सफल नहीं हुई थी। मायावती की सबसे बड़ी टेंशन इस समय मुस्लिमों की बसपा से दूरी है। मुस्लिमों ने जब जब बसपा का साथ दिया मायावती अच्छी स्थिति पर नजर आई थीं। ऐसा माना जा रहा है कि मुस्लिम मायावती से छिटक चुका है अब वह दोबारा उनका भरोसा जीतने की कोशिश कर रही हैं लेकिन उनको अपनी इस मुश्किल का हल 2024 के चुनाव से पहले निकालना ही होगा। 2007 से के बाद से ही चुनाव में लगातार हार झेल रहीं मायावती की सबसे बड़ी टेंशन 2024 की है।
सूत्रों की मानें तो अगले आम चुनाव से पहले मायावती नई रणनीति के साथ आगे बढ़ेंगी। उनका यह बयान देना कि बसपा ही बीजेपी को हरा सकती है उनकी आगे की रणनीति की ओर इशारा कर सकता है। आने वाले समय में वो मुस्लिम नेताओं को पार्टी में जगह देंगी और उनको पहले की तरह तवज्जो देती नज़र आ सकती हैं। दरअसल बीजेपी ने मायावती के सामने दोहरी चुनौती पेश कर दी है। दलित पहले मायावती का कोर वोटर (core voter) माना जाता था लेकिन बीजेपी ने अब उसमें भी सेंध लगा दी है जिससे उनको कई मोर्चे (front) पर काम करना होगा।